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कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी लखनऊ और उसके बाद अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी पधारे। उन्होंने लखनऊ में दलितों के एक सम्मेलन को तो अमेठी कांग्रेस कार्यालय में पार्टी की ग्राम सभा के अध्यक्षों को संबोधित किया था। दोनों ही कार्यक्रम पार्टी कार्यालय में हुए थे। लखनऊ में उन्हें दलित याद आये तो अमेठी में महात्मा गांधी की याद आ गई। दोनों के बहाने उन्होंने मोदी, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को घेरा। अमेठी में राहुल ने कहा, ‘महात्मा गांधी मेरे राजनैतिक गुरु हैं, जिन लोगों ने मेरे गुरु को मारा आखिर वे मेरे कैसे हो सकते हैं।’ वह यहीं नहीं रूके उन्हें पता था कि जेएनयू में कथित देशद्रोहियों का समर्थन करने के कारण वह फंसते जा रहे हैं, इसलिये राहुल को सफाई देनी पड़ी थी, ‘मेरे खून के एक−एक कतरे में देशभक्ति भरी है।’ आश्चर्यजनक रूप से राहुल को अपनी देशभक्ति साबित करने के लिये पंडित जवाहर लाल नेहरू के 15 वर्षों तक जेल में बिताये समय से लेकर दादी इदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी तक की शहादत गिनानी पड़ी। (शायद उनके पास यही एक पूंजी होगी)
लखनऊ और अमेठी के कार्यक्रमों में राहुल ने अपने खानदान की शहादत का तो जिक्र किया लेकिन यह नहीं बताया कि जम्मू−कश्मीर में जो हालात बने हुए हैं उसके लिये पंडित जवाहर लाल नेहरू पर हमेशा क्यों उंगली उठाई जाती है। चीन से युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने वायुसेना का इस्तेमाल किस वजह से नहीं किया था, जिसका खामियाजा देश को भारी जानमाल के नुकसान से चुकाना पड़ा था। लाखों सैनिक भी शहीद हुए थे। उन्होंने यह भी नहीं बताया कि इंदिरा गांधी द्वारा संविधान की धज्जियां उड़कर देश में आपाताकाल थोपने के लिये कांग्रेस को देश से माफी क्यों नहीं मांगनी चाहिए। राहुल को यह भी बताना होगा जब उनकी दादी इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी, तब कांग्रेसियों ने कितने सिख परिवारों को जान से मारकर उनका घर बार उजाड़ दिया था। यह संख्या सैकड़ों में नहीं हजारों मे थी। राहुल ने यह भी नहीं बताया कि पंजाब में आतंकवाद का भस्मासुर बने भिंडरावाला को आगे बढ़ाने में उनकी दादी इंदिरा गांधी ने कैसी भूमिका निभाई थी, जिस कारण दशकों तक पंजाब आतंकवाद की आग में जलता रहा था। राहुल यह भी नहीं बताते हैं कि इंदिरा गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी ने सिख के साथ मारकाट पर यह बयान क्यों दिया कि जब जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है।
राहुल गांधी, महात्मा गांधी को अपना राजनैतिक गुरु मानते हैं। वह कहते हैं कि गांधी जी को जिस गोडसे ने गोली मारी केन्द्र की भाजपा सरकार आज उन्हीं की पूजा करती है, लेकिन यह नहीं बताते हैं कि गोडसे ने गांधी के शरीर पर गोली दागी थी, जबकि कांग्रेस ने गांधी जी की विचारधारा की हत्या की थी। गांधी जी आजादी के बाद कांग्रेस का विघटन करना चाहते थे लेकिन पंडित जवाहर लाल नेहरू और उनकी चौकड़ी ने ऐसा नहीं होने दिया। वह यह नहीं बताते हैं कि गांधी जी देश का प्रथम प्रधानमंत्री किसको बनाना चाहते थे (ताकि देश का बंटवारा न हो)। वह यह भी नहीं बताते हैं कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और लाल बहादुर शास्त्री जैसे बड़े नेताओं / स्वतंत्रता सेनानियों की मौत को कांग्रेसियों ने हमेशा रहस्यमय क्यों बनाये रखा। इतिहास के पन्ने ऐसे तमाम सवालों से भरे हुए हैं, जिसका जवाब कभी नहीं मिल पाया और न मिलने की उम्मीद है। वह यह क्यों नहीं बताते हैं कि बाटला हाउस कांड में आतंकवादियों की मौत की खबर सुनकर उनकी मां सोनिया गांधी भावुक होकर रोने क्यों लगी थीं। वह यह भी नहीं बताते हैं कि किसी मजबूरी में करीब 11 वर्ष पूर्व मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया था, जबकि राष्ट्रपति भवन में सोनिया गांधी प्रधानमंत्री पद के लिये अपनी दावेदारी के साथ केन्द्र में सरकार बनाने का दावा करने गईं थी। राष्ट्रपति भवन में ऐसा क्या हुआ था, जो लौट कर आत्मा की आवाज पर सोनिया ने पीएम बनने से इंकार कर दिया, जिसके बाद मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाया गया। वह यह क्यों नहीं बताते हैं कि पार्टी में जब मनमोहन सिंह से अधिक योग्य नेता प्रणब मुखर्जी मौजूद थे तो प्रधानमंत्री पद के लिये उनकी अनदेखी क्यों की गई। इसके पीछे दस जनपथ की क्या साजिश थी। क्या दस जनपथ को रबर स्टाम्प पीएम की जरूरत थी, जिसके लिये मनमोहन सिंह फिट बैठते थे।
राहुल इतिहास से सबक लेने की बजाये उसे गलत तरीके से दोहराते रहते हैं। संविधान का मजाक उड़ाना उनके लिये आम हो गया है। इसीलिये यह नहीं बताते हैं कि जब अमेठी में एमएलसी चुनाव के कारण आचार संहिता लगी हुई है, तब वह चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करके वहां सभा क्यों करते हैं। वह यह भी नहीं बताते हैं कि हैदराबाद में एक छात्र दुर्भाग्यपूर्ण हालात में आत्महत्या कर लेता है या फिर मुजफ्फनगर में दंगा होता है अथवा जेएनयू में बावल होता है तब तो वह वहाँ पहुंच जाते हैं, लेकिन जब मालदा में हिंसा होती है तो वहां उनके कदम क्यों नहीं पड़ते। राहुल को चिंता इस बात की भी है कि केन्द्र सरकार विश्वविद्यालय से लेकर अन्य संवैधानिक पदों पर आरएसएस की विचारधारा वाले लोगों को बैठा रही है, लेकिन उनके पास इस बात का जवाब नहीं है कि उनकी ही पार्टी के नेता और उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान कि देश की प्राकृतिक संपदा पर पहले हक अल्पसंख्यकों का है, पर कांग्रेसी चुप क्यों रहते हैं। वह यह भी नहीं बताते हैं कि क्यों वह संसद को ठप करने के लिये तो ललित मोदी कांड, मध्य प्रदेश के व्यापमं घोटाले, राजस्थान की मुख्यमंत्री के ललित मोदी से संबंध को लेकर संसद में हाय−तौबा करते हैं, उसे चलने नहीं देते हैं, लेकिन संसद खत्म होते ही वह इन मुद्दों से मुंह क्यों मोड़ लेते हैं। उनको यह भी बताना चाहिए की बहुमत के साथ सरकार चुनने वाली जनता किस तरह से साम्प्रदायिक हो सकती है और 44 सीटों वाली कांग्रेस जिसे जनता ने ठुकरा दिया है, वह कैसे धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़ सकती है।
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