भारत की कई आदिवासी जातियों में गोदना गुदवाने की प्रथा है. इसके पीछे यह विश्वास है कि इससे स्त्री की सुन्दरता का आकर्षण और बढ जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्रियों के पैरों में बचपन से ही चांदी के कड़े और हाथों में बाजूबंद पहना दिए जाते हैं, इनके निशान हाथों और पैरों में जीवन भर के लिए पड़ जाते हैं. छोटी उम्र में वजनदार चांदी की बेड़ियाँ पहनने से कितना कष्ट होता है, और चलने फिरने में कितनी परेशानी होती है. इसे भुक्तभोगी ही जान सकता है.
इस पुरुष प्रधान समाज में नारी को कभी भी ‘मानव’ नहीं माना गया. वरन उसे एक सजी संवरी और रंगी-पुती गुडिया बना कर, एक मनोरंजन का साधन बनाये रखने में ही ज्यादा रुचि रही है. जैसे किसी ज़माने में चीन में एक प्रथा थी, लड़कियों के पांवों में बचपन से ही लोहे की जूतियाँ पहना दी जाती थीं, उम्र बढने के साथ ही शरीर भी बढता था, लेकिन पैरों में लोहे की जूतियाँ होने के कारण पैरों का विकास रुक जाता था, और वे छोटे ही रह जाते थे, इसका कारण था, क्योंकि समाज में छोटे पैरों वाली स्त्री को ही सुन्दर समझा जाता था. लेकिन दूसरी तरफ, अगर सोचा जाये तो इससे उनके पैरों में दर्द नहीं होता होगा क्या? क्या वो आसानी से चल-फिर सकती थीं, शायद नहीं.
आज भी दुनिया में कुछ ऐसे कबीले / जातियां हैं, जिन्होंने खिलोने की भांति, स्त्री को भी तराशने, काटने, छांटने का अधिकार सुरक्षित रखा हुआ है.
ऑस्ट्रेलिया की एक आदिम जाति इगरोट के लोग दांतों को कुरूपता की निशानी समझते हैं, वहां स्त्रियों के दांत महज इसलिए तोड़ दिए जाते हैं ताकि वो सुन्दर दिख सकें, लड़कियां बचपन को पार करके जैसे ही जवानी में कदम रखती हैं, वैसे ही उनके दातों की ठोक-पीट प्रारम्भ हो जाति है. पहले छड़ी से मार मार कर, दांतों की जड़ें ढीली की जाती हैं, फिर पत्थर के टुकड़े से ठोक-ठोक कर दांत उखाड़ दिए जाते हैं, वहां यह धारणा है कि जो स्त्री अपने दांत नहीं तुडवाती, वह अपने पति को खा जाने के लिए दांत रखती है. जबकि पुरुष अपने दांतों को नुकीला और किसी विशेष विधि से काला कर लेते हैं, उनका विश्वास है कि इससे उनकी सुन्दरता में चार चाँद लग जाते है.
मलेशिया कि आदिम जातियों में स्त्रियों के लम्बे कान सुन्दरता के प्रतीक माने जाते हैं. उनके कानो में छेद करके वजनदार बालियाँ पहना दी जाती हैं. जिससे कान गर्दन तक खिंच जाते हैं.
बर्मा की पहाड़ी जाति पड़ाग में आज भी लम्बी गर्दन को सुन्दर समझा जाता है. जिसकी गर्दन जितनी लम्बी, वो स्त्री उतनी ही सुन्दर समझी जाती है. इसके लिए सात-आठ वर्ष की उम्र में लड़कियों के गले में एक के ऊपर एक करके कई पीतल के कड़े पहना दिए जाते हैं. जैसे-जैसे उम्र बडती है, कड़ों की संख्या भी बडती जाती है, ताकि उसकी गर्दन लम्बी, और लम्बी हो जाये. इस प्रकार पूर्ण यौवन प्राप्त करने तक स्त्री के गले में 30 से भी ज्यादा कड़े होना कोई नई बात नहीं.
मलेशिया के कबीलों की मान्यता है कि जिस स्त्री का सिर जितना चौड़ा और चपटा होगा, वह उतनी ही सुंदर और भाग्यशाली होती है. मां-बाप लड़की के पैदा होते ही उसका सिर गरम पानी से भीगे कपडे से तब तक बार-बार दबाते रहते हैं जब तक वह चपटा होकर गर्दन के बराबर नहीं हो जाता, इसके बाद लड़की के सिर में लोहे का पहिया फंसा दिया जाता है, जो उसके 15 वर्ष की होने तक उसके सिर को दबा के रखता है.
अफ्रीका में लम्बे और मोटे होंठ सुन्दरता के प्रतीक माने जाते हैं, यहाँ की लड़कियों के 4 -5 वर्ष के होने पर होठों को कील से गोद कर उनकें लकड़ी के गोल टुकड़े फंसा दिया जाते हैं. उम्र बढने के साथ-साथ लकड़ी के गोल टुकड़ों का आकार भी बड़ा होता जाता है. इससे उनके होंठ इतने लम्बे हो जाते हैं की वो तरल पदार्थ के सिवा कुछ भी खा नहीं पातीं. कहीं-कहीं तो छोटे बचों के होठों से भारी-भारी चीज़ें लटका दी जाती हैं. ताकि उनके होंठ खिंच कर बड़े और लम्बे हो जाएँ
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