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कौन कहता है..हम गरीब हैं……???

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भारत के भ्रष्ट नेताओं, अमीर घरानों और बड़े-बड़े अफसरों द्वारा विदेशी बैंकों में अवैध रूप से जमा किया हुआ धन ही काला धन है, लेकिन इस काले धन का एक दूसरा पहलू भी है, जो पूरी तरह सफ़ेद होकर अपने भारत देश में ही रखा हुआ है, लेकिन चंद लोगों के सिवा यह धन किसी और के काम नहीं आ रहा. या ये कहें कि ‘काम आने नहीं दिया जा रहा’.
कुछ लोग अपना काला धन / फालतू धन पूजाघरों को दान में दे देते हैं क्योंकि उनका विचार है की इस से उनका लोक और परलोक दोनों सुधर जायेंगे. यह दान किया हुआ धन धर्मस्थानों, धर्मगुरुओं के पास यां ड़ेरों पर पड़ा रहता है जहाँ इसका कोई प्रयोग नहीं किया जाता अथवा गलत प्रयोग किया जाता है. क्या इस धन को उत्पादक कार्यों में नहीं लगाया जा सकता था? लेकिन उलटे इसकी सुरक्षा करने के लिए सरकारी खजाने के ऊपर अतिरिक्त बोझ पड़ता है. विश्व के सबसे अमीर धर्मस्थानों में भारत का पहला नम्बर है, इसकी दूसरी तरफ देखा जाये तो विश्व के सबसे अधिक गरीब भारत के अन्दर ही रहते हैं, भूखमरी के शिकार 50 % लोग भारत में ही पाए जाते हैं.
चलिए, मुद्दे की बात पर आते हैं,
केरल के स्वामी पद्मनाभन मंदिर के 6 तहखानो में से 5 तहखानो को खोलने के पश्चात, 100,000 करोड़ के हीरे, सोना और जवाहरात प्राप्त हुए हैं. इस अनमोल खजाने के कारण पदमनाभन मंदिर, तिरुपति बाला जी मंदिर को पछाड़ कर पहले नम्बर पर चला गया है. तिरुपति बाला जी मंदिर वो मंदिर है जिसमें रोजाना 3 से 4 करोड़ रूपये का माथा ही टेक दिया जाता है, इस रकम को बोरियों में भरने और गिनती करने के लिए दर्ज़नो कर्मचारी तैनात रहते हैं. इस मंदिर में सालाना 350 किलो सोना (लगभग) और 5000 किलो चांदी (लगभग) का माथा टेका जाता है. वर्ष 2010 में इस मंदिर को 600 करोड़ रुपए की धनराशि चडावे के रूप में प्राप्त हुई. 2010 में इस मंदिर के पास 50 ,000 करोड़ रुपए की सम्पति का अनुमान लगाया गया था. जबकि इससे पहले 2008-09 में इस मंदिर का सालाना बजट ही 1925 करोड़ रुपए का था.
इस के इलावा, केरल का ही गुरुवयूर मंदिर, शिर्डी का साईं बाबा मंदिर,, मुंबई का सिद्धिविनायक मंदिर, जम्मू का वैष्णो देवी मंदिर, गांधीनगर का अक्षरधाम मंदिर, पूरी का जगन्नाथ मंदिर, कोलकाता का कालीमाता मंदिर और अमृतसर का स्वर्ण मंदिर, इतने अमीर मंदिर हैं कि इनकें भरा हुआ सोना, रिज़र्व बैंक के कुल सोने से भी ज्यादा है.
ये तो बात हुई कुछ मंदिरों की, अब बात करें कुछ धार्मिक गुरुओं / बाबाओं / स्वामियों की, देखें ज़रा उनके पास क्या है. इन बाबाओं / स्वामियों की धन-दौलत कितनी है, इसके बारे में हमेशा ही भ्रम रहा है. गोलमोल तरीके से एक बार बाबा रामदेव ने अपनी सम्पति का जिक्र करते हुए कहा था उनके पास दान में मिली राशि और दवाईयां बेच कर मिली धनराशि से उन्होंने चार ट्रस्ट बनाये हैं, जिनकी कुल सम्पति 426.19 करोड़ रुपए है, इस ब्यान में किसी भी कंपनी या ट्रस्ट का ज़िक्र नहीं था. दुसरे मायनो में ये बाबा / स्वामी भगवे और सफ़ेद चोलों में सजे हुए व्यापारी हैं. अप्रत्यक्ष रूप में यह बाबा/स्वामी बड़े-बड़े व्यापारिक संस्थानों के कर्ता-धर्ता हैं, बड़े-बड़े व्यापारियों के सलाहकार हैं, उनके घरेलू विवाद सुलझाने वाले हैं क्योंकि इनकी स्त्रियों के ऊपर इन बाबाओं की पकड़ बहुत मजबूत है. ये बाबा/स्वामी सरकारों के फैसलों को भी प्रभावित करते हैं और कई तो सरकारी कामों में सीधी दखलंदाज़ी तक करते हैं. और ऐसे कृत्यों के कारण इनको मिलती है प्रसिद्धी और चेलों की फौज, जिससे धन-दौलत की वर्षा होती है इन बाबाओं/स्वामियों के ऊपर.
अख़बारों की मानें तो, बाबा रामदेव की कंपनियां प्रति मिनट 3000 रुपए का कारोबार कर रही हैं. इनकी कुल सम्पति 1200 करोड़ रुपए है. बाबा के भक्त इनके उत्पादों से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं और केवल बाबा के उत्पादों/दवाइयों की खरीद करना ही अपना धर्म मानते हैं. टीवी चैनल ‘आस्था’ में बाबा के करीबी आचार्य बालकृष्ण के 99.5% शेयर हैं, जबकि बाबा की एक कंपनी ‘पतंजलि आयुर्वेद’ में बालकृष्ण के 310 करोड़ रुपए के शेयर हैं, जो की वास्तव में बाबा रामदेव के ही हैं. बाबा की दूसरी कम्पनियां ‘दिव्या फार्मेसी’ और ‘पतंजलि फ़ूड हर्बल पार्क’ क्रमश 300 और 500 करोड़ रुपए की कंपनियां हैं. स्कॉट्लैंड में ‘सैम और सनीता’ नामक दम्पति ने बाबा को एक टापू दान में दिया है, जहाँ बाबा जी योगा कैंप लगायेंगे और करोड़ों कमायंगे. जबकि सैम और सनीता दान देने का पाखंड रच के बाबा के बिजनेस में 7.2% के हिस्सेदार बन चुके हैं. और वहां की सरकार को बेवकूफ बना के करोड़ों रुपए टैक्स की चपत लगा रहे हैं.
ख़ुशी से झूमते हुए बाबा के एक चेले (यहाँ नाम देना ठीक नहीं) ने बताया कि बाबा जी कि मेहरबानी से हमारा बिजनेस दिन दूनी और रात चोगुनी तरक्की कर रहा है, और हम जल्दी ही पूरी दुनिया की मार्केट पर कब्ज़ा कर लेंगे. सिर्फ एक वर्ष पहले ही बाबा ने हरिद्वार में 125 एकड़ में 500 करोड़ की लागत से पतंजलि फ़ूड हर्बल पार्क स्थापित किया है. और इस पार्क का निर्माण अमरीकी स्टायल से किया गया है. यहाँ बताने की आवश्यकता नहीं की बाबा की नज़रें अब अमरीका के बाज़ार पर हैं. ये तो बात हुई, आज के सबसे चर्चित बाबा की, आइये अब आगे चलें………
काली-सफ़ेद दाड़ी, मोटी आखें, माथे पर चन्दन लेप लगाने वाले तांत्रिक चन्द्रास्वामी याद हैं आपको, उनके शिष्यों में दिवंगत प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव, चन्द्र्शेखेर, ब्रुनई के सुल्तान, हथियार व्यापारी अदनान खुशोगी, भूतपूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और अदाकारा एलिज़ाबेथ टेलर भी शामिल रहे हैं. इस स्वामी को 1996 में लन्दन के एक व्यापारी लखुभाई पाठक से 100 ,000 डॉलर की ठगी मारने के जुर्म में ग्रिफ्तार किया गया था.
‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ संस्थान के संस्थापक श्री श्री रविशंकर, बाबा रामदेव के परम मित्र, जिन्होंने बाबा का अनशन भी तुडवाया था, का आर्ट ऑफ़ लिविंग आश्रम बंगलौर के नजदीक 70 एकड़ में फैला हुआ है, जिसमें रिहायशी मकान, हस्पताल, ऑफिस आदि बने हुए हैं. पूरे विश्व में इस संस्थान की 3000 शाखाएं खुली हुई हैं, जिनमें से कुछ अमरीका और दक्षिण अफ्रीका में भी हैं, यह संस्थान किताबें और दवायें बेच कर हर साल मोटा मुनाफा कमाता है.
सत्य साईं बाबा की मौत के बाद उनकी धन दौलत का विवरण देते हुए मीडिया की रिपोर्ट है कि बाबा लगभग 40,000 करोड़ रुपए के विशाल साम्राज्य के मालिक थे. उनका आश्रम पुटपर्थी में 70 एकड़ में फैला हुआ है, जिस में, निजी हवाई पट्टी,शिक्षा संस्थान, बाग़-बगीचे बने हुए हैं, इसके इलावा 300 बिस्तर का हस्पताल जो 2001 में 130 करोड़ की लागत से बनाया गया था. इसके इलावा इस संस्थान कि 167 देशो में शाखाएं भी चल रही हैं….यही नहीं…….हर तीन वर्ष के बाद……सत्य साईं मंदिर की तिजोरी को खोल कर उसमें रखे गहनों की नीलामी भी की जाती है…ये खज़ाना वही होता जो चढ़ावे के रूप में भक्तों से प्राप्त होता है….इस बार भी 280 किलो सोना और 3200 किलो चांदी की नीलामी की जा रही है.
अब आइये, हरियाणा में चलें, सिरसा के डेरे का नाम तो काफी सुना होगा आपने, अक्सर ही यह डेरा, अपने बाबाओं के कृत्यों, और करोड़ों के कारोबार के कारण, अख़बारों की सुर्ख़ियों में छाया रहता है.
वहीँ पंजाब का डेरा ब्यास, जो इतना विशाल है, की इसमें 7000 रिहायशी मकान, बिजलीघर, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट, निजी हवाई पट्टी, के इलावा फल, सब्जियों, और अनाज का प्रचुर मात्रा में उत्पादन किया जाता है. यहाँ एशिया का सबसे बड़ा पंडाल है, जिसमें 250,000 लोग इकट्ठे बैठ कर लंगर (भोजन) खा सकते हैं. लेकिन सिर्फ डेरे के श्रद्धालु, आम लोग नहीं.
ये तो थे कुछ गिने चुने बाबा, जो माया (धन-दौलत) को काली नागिन कहते हैं. और खुद गले तक इस अंधी दलदल में धंसे हुए हैं. इन्होने कभी टैक्स नहीं दिया, कभी टेलिफोन/बिजली का बिल नहीं दिया. लेकिन हर धर्मस्थान/डेरे में 2-4 एयरकंडीशनर, स्कोडा और टयोटा गाड़ियाँ आम मिल जाएँगी. पूरे देश में ऐसे कई धर्मसंस्थान/डेरे हैं जहाँ अथाह दौलत पड़ी हुई है, किसी काम की नहीं, लेकिन भारत का आम नागरिक आज भी दैनिक 32/- रुपए (केद्र सरकार के अनुसार) में गुजारा करने के लिए विवश है!!!

तो आप ही बताएं….क्या हम गरीब हैं…..??? जी नहीं.!
हाँ…. विवश ज़रूर हैं….!!!

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