यह दुर्घटना बहुत बढ़िया शब्द है….दुर्घटना हमेशा किसी की गलती से होती है…..दुर्घटना के शिकार हुए बन्दे को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ता है…राजनीति का शिकार सरकार में भर्ती होना चाहता है….क्या सरकार दुर्घटनाग्रस्त नेताओं का अस्पताल है?……अस्पताल एक ऐसी जगह होती है….जहाँ से हर आदमी जल्दी से जल्दी निकलना चाहता है…..सरकार एक ऐसा अस्पताल है जहाँ से कोई नेता बाहर नहीं निकलना चाहता……तो क्या देश इसलिए ही बीमार रहता है…….???? तो हम बात कर रहे थे दुर्घटना की….दुर्घटना हमेशा किसी न किसी की गलती से होती है….अब यहाँ पर गलती किस की थी….? कोई प्रधानमन्त्री तो ऐसी गलती कर नहीं सकता…तो क्या सारी गलती राजनीति की है….बेचारे मनमोहन सिंह तो अपने रास्ते जा रहे होंगे…..राजनीति ने ही आकर टक्कर मार दी…..ये राजनीति चाहे कितनी भी बुरी क्यों न हो….लेकिन नेताओं को तो यह विश्वसुन्दरी लगती है…..हर नेता उसे अपने सीने पर झेलना चाहता है…..वैसे..अगर कोई विश्वसुन्दरी हमारे या आपके सीने से भी टकरा जाये तो आपको या हमें कहाँ बुरा लगने वाला है….????? मनमोहन सिंह का कहना है कि उनका राजनीति में आना एक दुर्घटना है…अरे भाई दुर्घटना होने के बाद हाथ-पैर टूटते तो देखे-सुने पर प्रधानमन्त्री बनते पहली बार देखा है…..हाँ कुछ टूटा तो था….और वो थी कईयों की आस….जो यही सोच रहे थे कि ये दुर्घटना हमारे साथ क्यों नहीं हुई..???? अब इसमें गलती किस की है दुर्घटना तो हुई थी ‘रिमोट कंट्रोल’ से…..अब रिमोट कंट्रोल को जो चैनेल अच्छा लगा उसने चला दिया…..जो दुर्घटना अच्छी लगी करवा दी…… मनमोहन सिंह को भी कहाँ पता था कि ये दुर्घटना होने वाली है…..मतलब वो प्रधानमन्त्री बनने वाले हैं…..वैसे ऐसा पहली बार नहीं हुआ….पहले भी कई बार हो चुका है…पहले भी कई बार इस देश में कई दुर्घटनाग्रस्त नेता हो चुके हैं….इंद्र कुमार गुजराल तो याद होंगे आपको…….आजकल क्या कर रहे हैं…????? एक और थे देवेगौडा जाग रहे या सो रहे हैं…….विश्वनाथ प्रताप सिंह को तो जानते हैं आप…..उन्होंने ने तो खुद ही अपने साथ बहुत भारी दुर्घटना कर ली थी….पूरे देश का समाजवाद ही जातिवाद में बिखर गया था…. अब आते हैं मुद्दे की बात पर…सबसे बड़ी दुर्घटना तो कांग्रेस पार्टी के साथ हुई….पूरे 110 साल का वजूद और 65 साल की आज़ादी के बाद भी…यह पार्टी नेहरु खानदान के बाहर एक भी ऐसा नेता पैदा नहीं कर पाई….जो पार्टी के नेताओं को एकजुट रख सके…दुर्घटना पर दुर्घटना करने और कई बार हाथ-पाँव तुडवाने के बाद….बड़े-बूड़े नेता अपनी बहु-बेटी की उम्र की महिला के चरणों में जा गिरे….उसी खानदान की शरण में पहुंचे जो कहलाता तो ‘गाँधी’ है लेकिन है ‘नेहरु’ का….. अब हिंदुस्तान की राजनीति में जो दुर्घटना हुई वो ये कि अब यहाँ पार्टियाँ नेता नहीं बनातीं…..बल्कि नेता पार्टी बनाते हैं…इसलिए पार्टियाँ ‘लोकतान्त्रिक’ न होकर ‘खानदानी’ बन चुकी हैं…..जो खानदानी नहीं वो नेता नहीं बन सकता…….और जब कोई खानदानी नेता उपलब्ध नहीं होगा…..तो मनमोहन जी जैसों के साथ ‘दुर्घटना’ होती है………..
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